मंगलवार, 19 जनवरी 2010

ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है..ज़िंदगी क्या है जानने के लिए...


आज कल मुंबई में खुदकुशी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है...पिछले दो सप्ताह में दो दर्जन से ज़्यादा लोगों ने खुदकुशी का रास्ता चुन लिया। यह सब क्यूं हो रहा है...इसका आसान सा जवाब सरकार के पास भी नहीं है...वो तो भला हो मीडिया वालों का जिनके चलते पुणे और मुंबई के आत्महत्या की ख़बरें आसानी से देश भर में फैल गई और शासन से लेकर समाज तक चिंता में है। आखिरकार खुद के जीवन को समाप्त कर लेने का फ़ैसला लेने कि नौबत क्यूं आ रही है...?

इसे रोकने के लिए लोगों ने सुझाया कि...

स्कूल बैग को हल्का कर दो।

परीक्षा के परिणाम का पैटर्न बदल दो।

स्कूल से ले कर घर तक बच्चे को किसी भी ग़लती के लिए दण्डित नहीं किया जाए....

वगैरह...वगैरह...

सारी दवाईयां मर्ज़ को ख़त्म करने के बजाए घाव को नासूर बनाने वाली थी वो हुआ और आज नतीजा हमारे सामने है...।

किसी ने भी जीवन पद्धती की ओर लौटने की बात नहीं की जो कि सारि समस्याओं के समाधान का एक मात्र दवा थी। दरअसल आज व्यवसायिकता के इस दौर में अभिभावक इतने व्यस्त रहने लगे हैं कि, बच्चे इस छोटी सी उम्र में ही खुद को अकेला समझने लगे हैं। घर में रह कर भी छोटी उम्र से हि बच्चा वानप्रस्थ जीवन जी रहा होता है। छोटी-छोटी बातें भी उसे घूंट घूंट कर मार रही होती है।

आज से चार साल पहले मैं अपने शहर के एक व्यवसायी से मिला था...संपर्क बढ़ने के कारण कुछ काम वस उनके घर पर सुबह आठ बजे पहुंचा...उस समय उन्होने मुझसे ज्यादा बातें नहीं कि लेकिन बहुत खास बात उन्होनें अपने दिनचर्या से जुड़ी हुई बताई...जिसका उल्लेख मैं आज के दौर में उचित समझता हूं।

सुबह के आठ बजे वह अपने चार साल के बच्चे को स्कूल ले जाने के लिए तैयार हो रहे थे...मैने पूछा कि बच्चे को आप खुद ही स्कूल छोड़ते हैं! मेरे पूछने का भाव आश्चर्यजनक था यह देख कर वो अपनी मज़बूरी मेरे सामने रखने लगे...उन्होंने कहा कि जिस रोज से अपने बच्चे का दाखिला स्कूल में कराया हूं तब से लागातर दो माह तक जब अपने बच्चे को मैं देख नहीं पाया तब मैने यह निर्णय लिया कि स्कूल छोड़ने खुद जाया करूंगा। दरअसल उनका बच्चा स्कूल वैन से सुबह आठ बजे स्कूल चला जाया करता था और दोपहर को दो बजे वापस घर आ जाया करता था।

और वो खुद सुबह के नौ बजे से रात के दस बजे तक व्यवसायगत समस्याओं में उलझे होने के चलते घर से बाहर रहते थे। रात को जब खुद घर आया तब पता चला कि बच्चे सो गए हैं और जब खुद सुबह सो के जगे तब पता चला कि बच्चा स्कूल चला गया है। यह दिनचर्या अभिभावकों को बच्चों से कोसों दूर कर देती है और एक घर में रह कर भी अभिभावक दोस्त के बतौर भी अपने बच्चे से नहीं मिल पाता है...उधर स्कूल में भी गुरू शिष्य परंपरा जैसी कोई बात अब बची नहीं, लिहाजा बच्चा घर से बाहर तक अकेलापन झेल रहा होता है। छोटी सी असफलता भी उसे तोड़ देती है। छोटी-मोटी बातें भी घूंटन देती है। वो क्या करे? पश्चिम की ओर देखने की आदत आज ज़िदगी पर भारी पड़ रही है। पाश्चात्य जीवनशैली के चक्कर में पड़ कर आज लोग खुद के लाईफ स्टाईल को इतना ज्यादा उन्नत बनाने में लगे हैं कि घर-परिवार, बाल-बच्चे सब द्वितीयक हो गए हैं। जो बचपन सूनी गलियों में बीता फिर उस जवानी को संवार पाना और कठीन हो जाता है लिहाजा नौजवान भी जिंदगी को ज़मीन का बोझ समझने लगाता है। इसलिए ज़रूरी है जीवन पद्धती को बदलने की। व्यक्ति में खुद के प्रति विश्वास भरने वाली जीवन पद्धती हमारी खुद की जीवन पद्धती थी...और उधार में हमने जो जीवन पद्धती लिए हैं उसमें ये सारि समस्याएं आती ही रहेंगी।

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

नए वर्ष की नई उमंगें....

सांसों में भर के उजियारा....चल नए पवन के साथ उड़ें।
रंग बिरंगे फूलों से चल....आसमां में नया रंग भरें।
ओस की बूंदों को चुराकर....एक नयी नदी बनाएं।
चल समंदर बनें.....बादल पे छा जाएं।
ले के मस्ती की पतंग....चल सजाएं हवा की सुरत को।
फैला कर अपनी बांहों को....चल बनाएं एक जन्नत नया।
जीत कर दिलों की दुनिया को.....चल रचें एक इतिहास नया।
नए वर्ष में जीवन को दें एक अनुपम उपहार नया......

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

ये बेलगाम महंगाई का भूत जो है....

बिजनेस पत्रकारिता से वास्ता रखने वाले हमारे साथी अरविंद मिश्रा जी ने देश की महंगाई पर अपनी चिंता जाहिर की है.....प्रस्तूत है उनके लेख...
महंगाई...बेलगाम महंगाई...आसमान छुती महंगाई और बेकाबू महंगाई...
जी हां महंगाई अब महंगाई नहीं रही...महंगाई बन गई है भूत....अरे भाई एक दो या दस नहीं महंगाई का आंकड़ा पहुंच गया है १९ के पास, क्योंकी इस भूत से डरता है हर आदमी। महंगाई के डर का शिकार हो रहा है...ग़रीब,मध्यम वर्ग...ग़रीब की थाली को अपने आगोश में ले लेने के बाद महंगाई का भूत पहूंच चुका है केंद्र सरकार के पास। यक़ीन नहीं होता तो अब हम आपको बताएंगे कि कैसे डर रही है सरकार...इस महंगाई के भूत से। दरअसल सुरसा की तरह मुंह फैलाए महंगाई का ख़ौफ़ इस क़दर सरकार को डरा रहा है कि वित्त मंत्री से ले कर देश के कृषि मंत्री सब हलकान हो रहे हैं। विपक्ष के हमलों से डरी सरकार अब महंगाई के लिए राज्यों को ज़िम्मेदार बता रही है। अपनी तरफ से किए गए सभी उपायों को फेल होता देख सरकार को अब कुछ नहीं सुझ रहा है। तभी तो वित्त मंत्री इन दिनों हर कॉंफ्रेंस में महंगाई के भूत का ज़िक्र करना नहीं भूलते। लेकिन महंगाई से निज़ात दिलाने के लिए प्रणब मुखर्जी, वित्तमंत्रालय की उपायों की नाकामी कम और राज्यों पर आरोप ज्यादा लगाते हैं। प्रणब दा के मुताबिक पीडीएस सिस्टम की लचर व्यवस्था महंगाई के लिए ज़िम्मेदार है। तो सवाल ये है कि लागातार कई सालों से बेलगाम महंगाई से निपटने के लिए क्या सरकार को अब पीडीएस की याद आई है? और उस पीडीएस की जिसके तहत केंद्र सरकार से मुहैया अनाज की दरें इतनी ज्यादा होती है कि राज्य सरकारें भी अब केंद्र सरकार से महंगा अनाज लेने से पीछे हट रही है। चलिए ये तो बात हुई प्रणब दा की....अब बात करते हैं कृषि के जगह क्रिकेट मंत्री भर बन कर रह गए शरद पवार साहब की.....अब यह सोंचना स्वभाविक है कि कृषि मंत्री कब बन गए क्रिकेट मंत्री?अरे भाई बात हि कुछ ऐसी है...दरअसल मंत्री महोदय को देश के कृषि कि कम और क्रिकेट कि ज्यादा रहती है...।तभी तो पवार साहब कभी देश की महंगाई के लिए मौसम में हो रहे बदलाव को अहम बताते हैं तो कभी महंगाई के ग्लोबल करार देते हैं। अरे जनाब ये महंगाई के भूत का असर है...जिसने मंत्रीयों की नींद हराम कर रखी है। आम जनता की सलाह यदि मानें तो सरकारें एक दूसरे पर आरोप लगाने के बज़ाए महंगाई से निपटने के लिए ठोस कदम उठाएं।
अरविंद मिश्रा

रविवार, 6 दिसंबर 2009

भारतीय क्रिकेट का 'शौर्य दिवस'




६ दिसंबर २००९ को मुंबई के ब्रेबॉन स्टेडियम में भरतीय टेस्ट क्रिकेट का शौर्य दिवस मना...लंकाई टीम के आखिरी ईंट के उखड़ते ही दक्षिण अफ्रिका की टेस्ट क्रिकेट में बादशाहत ख़त्म हो गई। वीरेंद्र सहवाग के बल्ले और जहीर खान के गेंद ने जो क़हर ढ़ाहा वह किसी के रोकने से नहीं रुक सका, धोनी के धौंस के आगे संगकारा के बांकुरे की एक न चल सकी और हम हो गए नंबर एक। एक पारी और २४ रनों की शानदार जीत भारत ने दर्ज कर ली। २-० से सीरीज़ जीतने के साथ ही विश्व रैंकिंग में भी भारत ने अपने टेस्ट क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी बढ़त ले ली।
आज से ठीक सत्रह साल पहले भगवान राम की जन्मभूमी अयोध्या में विवादित ढांचे का विध्वंस कर दिया गया था। लोग इसे कई रुप में देख रहे हैं...तब से आज तक यूं तो हर साल ६ दिसंबर को एक तबका शौर्य दिवस तो दूसरा काला दिवस मनाता आ रहा है। इस बार कुछ खास चर्चा इसलिए रही क्योंकि उस घटना के बाद गठित भारत की सबसे आलसी और नक्कारा जांच आयोग ने जिसके रिपोर्ट को संसद में रखने के बजाए उसके कुछ पन्ने फाड़ के सड़क पर किसी ने फेंक दिए और वह पन्ना एक अख़बार के पत्रकार को मिल गया, रिपोर्ट छप गई फिर संसद में लाना जरूरी समझा गया(गृह मंत्रालय की गोपनियता पर प्रश्नचिन्ह)। उस रिपोर्ट में १७०० पन्नों का सबसे बड़ा मजाक देश के साथ किया गया है। गृह मंत्री ने न तो रिपोर्ट के लिक होने को गंभीरता से लिया न ही रिपोर्ट को। बात साफ हो जानी चाहिए जब विवादित ढांचा गिराई जा रही थी तो देश में दो सरकारें नक्कारा थी...एक तो कांग्रेस की नरसिंह राव जी वाली केंद्र की सरकार और दूसरे भाजपा की कल्याण सिंह वाली उत्तर प्रदेश सरकार। जब सरकारें नहीं रोक पाई विध्वंस तो फिर राजनीतिक दलों को अब इस पर चर्चा करके नई पीढ़ी को भी जबरन उस पचड़े में फंसा कर खुद की राजनीतिक रोटियां सेकना बंद कर देनी चाहिए। क्योंकि आज की पीढ़ी शौर्य दिवस के रोज नए नए कीर्तिमान गढ़ रही है।

बुधवार, 25 नवंबर 2009

कलम आज उनकी जय बोल...


एक साल पूरे हो गए शहादत के...भारत माता के अस्मिता के रक्षार्थ अपने जान की परवाह किए बगैर होटल ताज के पर हुए हमलों से निपटने के लिए...वे चल दिए बिना किसी परवाह के...पर उन्हें क्या पता था कि लोकतंत्र के ठेकेदार उनके शहादत पर सियासत कर बैठेंगे...आज उस हमले को नाकाम बनाने वाले, देश को एक बहुत बड़े सौदेबाज़ी से बचाने वाले देश भक्त जो आज भी देश की रक्षार्थ सोवामें हैं उनके दर्द को समझा जा सकता है...जब पता यह चलता है कि तब के सरकार के नुमाइंदे जो आज भी सरकार में आ गए हैं वे उस रोज इसलिए मात्र घर से बाहर नहीं निकल पाए थे क्यूंकि सबसे अधिक ख़तरा उनके हि जान को था...वे इसलिए जान बचा रहे थे कि अगली बार फिर सरकार बनेगी और शामिल होने के लिए जान को बचाए रखना अहम है...बात साफ है एक देशभक्त जो खुद की परवाह इसलिए नहीं किया क्यूंकि वह सोच रहा था कि देश रहेगा तभी हमारे रहने का कोई मतलब निकलता है...दूसरा वह था जो यह सोच रहा था कि देश तो मरता जीता रहता ही है...मैं न रहूंगा तो कैसे .....होगा? ये जैकेट चोर लोग खुद की हिफ़ाजत इसीलिए अधिक करते हैं क्योंकि इनके लिए जैकेट को ठिकाना लगाना बड़ा मुद्दा होता है...आज हमारे केंद्रिय गृहमंत्री शहीद करकरे के जैकेट चोरी के सवाल पर सॉरी-सॉरी कहते नहीं थक रहे हैं...चोर कौन है यह पता लगाना मुशिकल साबित हो रहा है। शहीद हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे को जवाब देने की हिम्मत तो इन जैकेट चोरों में है हि नहीं ये देश को क्या जवाब देंगे...काश जैकेट ख़रीदी में घपला नहीं हुआ होता तो आज एक साल बाद हमारे वे जांबाज़ बिना किसी खरोंच के ताज भी बचाते -लाज़ भी बचाते। एक साल बाद भी आज हम मात्र खुफ़िया अलर्ट जारी करते रहते हैं और मुंबई की जगह असम में धमाके हो जाते हैं....एनआईए के बनने के बाद भी सुरक्षा एजेंसीयों में समन्वय का आभाव नज़र आता है। हमें आज भी अमेरिका के एफबीआई के भरोसे अपनी सुरक्षा करनी पड़ रही है...आखिर भारत के सुरक्षा तंत्रों को कब विश्वसनिय बनाया जाएगा और लोग किस तारीख़ से खुद को सुरक्षित महसूस कर पाएंगे यह देश पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमले के पहली बरसी के बाद भी अहम सवाल बना हुआ है। हमारे देश के शहीद जवानों की जयकारा आज पूरे देश में हो रही है और भविष्य हमेशा उनके शहादत के आगे नतमस्तक रहेगा लेकिन शहादत का असल लाभ तो तब मिलेगा जब हम सीना तान कर यह कहने की स्थिति में आ जाएं की आए जिस जिस की हिम्मत हो...।फिर किसकी मज़ाल है जो हमारी ओर आंख कड़ी करके देखे...
भारत माता के उन वीर सपूतों को शत-शत नमन जिनकी बदौलत हम आज चैन की सांस ले पा रहे है...

बुधवार, 18 नवंबर 2009

ये भावनात्मक आतंकवाद है...!

भारत एक विशाल राष्ट्र है इस बात की पुष्टि के लिए पहले कई सारे असंख्य तथ्य पेश किए जाते रहे हैं...और वो सारे तथ्य अकाट्य भी हैं। हमारे अनेकता में एकता वाली संस्कृति के आगे सारी दुनिया नत मस्तक थी और है भी...इसकी प्रमाणिकता एक और अकाट्य तथ्य से बढ़ जाती है कि भारत ही एक ऐसा राष्ट्र हैं जिसके अंदर महाराष्ट्र बसता है।दरअसल समय समय पर महाराष्ट्र के सबसे चर्चित ठाकरे परिवार ने मराठी मानुष और मराठा साम्राज्य के आगे इंसान को इंसान ना समझते हुए इस मुहिम को आगे बढ़ाया है...मराठी और ग़ैर मराठी के नाम पर कभी टेम्पो रिक्सावाले कि पिटाई तो कभी सड़क किनारे पाव भाजी बेचने वालों को तो कभी असहाय और निर्धन परीक्षार्थीयों को पीट-पीट कर करते रहे हैं। यह सब उसी महान राष्ट्र भारत के महाराष्ट्र में समय समय पर होता है जिसमें वीर शिवाजी के बाद अपने को सबसे शक्तिशाली क्षत्रप कहने वाले ठाकरे परिवार के लोग बसते हैं। महान शिवाजी इस देश को महान बनाने के लिए अतातायियों से लड़ते रहे और विजयी पताका फहराय थे। उनका अनुयायी कहते हुए आज के कथित मराठा शेर महाराष्ट्र के कुछेक बिल्डरों के लाभ के लिए ग़ैर मराठीयों से लड़ते रहते हैं, और इसके लिए भाषा जैसी पवित्र मानवीय आवश्यकताओं को द्वेष और बैर का माध्यम बना चुके हैं। हद तो तब हो गई जब चंद मवालियों के भरोसे अपने डूबते हुए पार्टी को बचाने के प्रयास करने वाले इसी कथित मराठ शेर ने एक ग़ैर भारतीय खेल के भगवान के अवतार सचिन तेंदुलकर को भी भारत का होने से ज्यादा महाराष्ट्र का होना कहने की समझाइस ही नहीं दी अपितु भला बुरा भी कहा...और जब इन ख़बरों को पत्रकारों ने समाज के सामने रखा तो ख़बर दिखाने के जुर्म में कुछेक गुंडों ने अखबार और चैनल तक को नहीं छोड़ा...प्रेस समाज का आइना है...और आइने के सामने खड़े होने की हिम्मत वही कर सकता है जो नैतिक रुप से सबल हो...लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं होना चाहिए कि आइने के सामने खड़े होने की हिम्मत न हो तो आइना को तोड़ ही दिया जाए। शिवसेना ने इस कुकृत्य से यही साबित किया है...अनाप शनाप मुद्दों पर मराठी लोगों के भावनाओं को उकसाना और उसके सहारे अपनी राजनीति की दाल-रोटी चलाने के आदी हो चुके ये लोग कुछ और नहीं कर सकते। इस फिज़ुल की भावनात्मक मुद्दों को चाहे वह जिस प्रांत के लोग उठाते हों इसे भावनात्मक आतंकवाद ही कहा जाएगा, और इससे उतनी ही सख्ती से निपटना चाहिए जितनी सख्ती से बाकी के आतंकवाद से निपटते हैं, हां प्राथमिकता तय करना सरकार का काम है...

रविवार, 15 नवंबर 2009

क्या भाजपा का 'कल्याण' हो पायेगा...?


राम मंदिर बनेगा...हिंदुत्व कायम रहेगा...मैं संघ का स्वयंसेवक था नहीं हूं...मेरे साथ धोखा हुआ, ठगे गए हम...ये सारी बातें आज वही व्यक्ति कर रहा है जो अभी से कुछ ही दिनों पहले भाजपा और हिंदुत्व को ठेंगा दिखाते हुए कई सारे खुलासा किया था भाजपा के हिंदुत्व के बारे में...। आज दलील यह भी है कि मेरे ही कारण पिछड़ गई भाजपा, अब पाश्चाताप करने को तैयार हूं..। शायद याद हो...लोकसभा चुनाव से ठीक पहले य़ूपी में एक रैली निकली थी उसका मक़सद था विवादित ढांचे के विध्वंस को लेकर जनता से माफ़ी मांगने का और उसके अगुआ कोई और नहीं थे यही मुलायम सिंह यादव थे और साथ में १९९२ के विवादित ढांचे के विध्वंस के समय के मुख्यमंत्री...कल्याण सिंह जी थे...। अभी से कुछ ही दिनों बाद १७ वीं बरसी होगी देश के कौमी एकता को लगे सबसे बड़े चोट की...लोग उसे कई नजरिए से देख रहे है, सैकड़ों लेखक मालामाल हो गए विध्वंस पर क़िताब लिख लिख कर...सैकड़ों लोग नेता बन गए आज तक ना तो मंदिर बन पाया न दुबारा भाजपा आ सकी...। लोगों ने भाजपा के साथ वफादारी भी की गद्दारी भी की...।भाजपा ने भी लोगों के साथ वही किया। कल्याण सिंह ने भाजपा के साथ भी और जनता के साथ भी वफाई-वेवफाई दोनों किया..। आज 'राह कौन सी जाऊं मैं' की स्तिथि में चौराहे पर खड़े ...अपने घर में आग लगा कर उजाला कर चुके हैं...दरअसल यह सब ब्लैकमेलिंग इसलिए हो पाती है क्योंकि जनता नादान की तरह देखते रहती है...राजनीति को नेताओं की जागीर समझ कर छोड़ चुकी है...।अभी हाल ही की घटना है छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले के दो पंचायतों में लोगों ने सरपंचों का हुक्का-पानी बंद कर दिया...वजह उन पर कुछ भ्रष्टाचार के आरोपों का होना था...मैं मानता हूं यह असल लोकतंत्र का इशारा है...जब लोक का डंडा पड़े तब लोकतंत्र सफल होगा..मात्र लोक के वोट देने से तो ब्लैकमेलिंग होती ही रहेगी...नेता बाग़ी ओर दाग़ी पैदा होता ही रहेगा, लेकिन यह बड़े स्तर पर भी होना चाहिए...।
ख़ैर अब तो सोचना भाजपा को है कि वह 'कल्याण' चाहती है या नहीं...।