लगभग ६० फीसदी मतदान के साथ शुरुआत तो हो गई है ४६ फीसदी के साथ बिहार नीचे से नम्बर १ एवं ८६ फीसदी के साथ लक्षदीप ऊपर से नम्बर १ रहा। कूल मतदान पर भी यदि गौर की जाए तो ६० फीसदी होना सफल लोकतंत्र कों सकारात्मक दिशाकी ओर ले जानेवाला है। लाल आतंक कों नकारते हुए लोगों ने धैर्य एवं साहस का परिचय दिया, नतीजा मतप्रतिशत बढ़ा। दरअसल वोट केवल इसलिए डालने की आवश्यकता नही है की यह सरकार बनाने या लोकतंत्र कों बचाने केलिए जरूरी है , यह हमारे बुनियादी सुविधाओं से लेकर राष्ट्र प्रगति तक केलिए भी उतनी ही जरूरी है। हो सकता है की कोई सर्वसम्पन्न है एवं उसे किसी भी तरह की मदद सरकार से नही चाहिए वह आसानी से जीवन निर्वहन कर रहा है फिरभी वह चुकी भारत का नागरिक है इसलिए उसकी यह जवावदेही होनी चाहिए की वह देश के प्रत्येक नागरिक की समृधि एवं कुशल जीवन जीने लायक माहौल प्रदान करने कों लेकर एक ऐसे लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास करे जो समाज के अन्तिम पंक्ति के अन्तिम व्यक्ति तक कों एक सुखमय माहौल प्रदान कर सके।
शहर के कोलाहल से दूर सुरिंदर ऐसी जगह रहता है जहाँ जाने के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नही है, ट्रेन भी गाँव से ४० किलोमीटर दूर तक ही आती है वहां से बस एक छोटे से चौक तक आती है फिर वहां से घर तक आने में सुरिंदर कों १० कलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है। अगर उसे सहूलियत होती है तो अपने टायर बैल के सफर में जिससे वो ज्यादा से ज्यादा ३० से ४० किलोमीटर दिन भर में चल सकता है।बात अगर आमदनी कि की जाए तो वह राष्ट्रीय औसत से भी कम कमा पाता है , भले ही दुनिया लाख कहे कि आज भारत में लगभग ७० फीसद लोग ऐसे हैं जो २० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कमा पाते हैं पर सुरिन्द्र उस सूची में भी नही आ पाता है । वह तो बमुश्किल २से ३सौ रुपया एक माह में कमा पाता है। वह भी मालिक के खेतों में काम करके। एक रोज की मजदूरी आज भी उसे १५-२० रुपये मिल पाते हैं वह भी मालिक की मर्जी से, वह अपनी आवाज भी ऊँची नही कर सकता क्योंकि मीडिया वहां तक पहुँच नही पाती है नाही कोई भी सरकारी मिशनरी उस दूर दराज के गाँव तक जा पाने में सक्षम हैवह अपने बच्चे कों भी अपने मालिक की मर्जी से ही स्कूल भेज पाता है जिस रोज मालिक के घर पर काम का बोझ ज्यादा है उस रोज वह बच्चे से भी काम लेता है। वह मजबूर है चाह कर भी अपने बच्चे कों बाहर के स्कूल में नामांकन नही करा सकता नाही उसके पास पैसे हैं नाही वह किसी कों मदद केलिए कह सकता है। वह वोट ही मात्र अपनी मर्जी से कर सकता है क्योंकि सरकार ने व्यवस्था दी है मतदान बंद कोठरी में करने की, फिरभी उसके मालिक ने स्पष्ट निर्देश दे रखा है की वोट उसे ही डालना है जिसे मालिक चाहते हैं। आख़िर उसकी आजादी कौन दिलाएगा? आज़ादी के ५० वर्षों के बाद भी हमारा सुरिन्दर आजाद नही है यह सुरिंदर एक नही चारो तरफ़ प्रत्येक गाँव में अपनी भाग्य पर रो रहा है। वही भारत का नागरिक है जिसे इंडिया ने नाकारा है आज उसके भलाई के लिए शत प्रतिशत मतदान की बात करना होगी । आज उसके लिए आवश्यक है लोकतंत्र की मजबूती । सुरिंदर आखिरी पंक्ति का आखिरी व्यक्ति है , वह जिस रोज खुशहाल होगया भारत खुशहाल हो जाएगा।
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