स्वामी विवेकानंद ने एक बार समुद्र तट पर देखा एक मछुआरा कुछ केकडे को घडे में डालते जारहा था, चुकी घडा खुले मुह का था सो विवेकानन्द जी ने पूछा - भाई ऐ केकड़े तो भाग जायेंगे तुम इसे ढक क्यूँ नही देते? यह सुन मछुआरा मुस्कुराते हुए जवाब दिया- आपका शक जायज है ये सारे केकडे भागने की कोशिश तो जरूर करेंगे लेकिन एक भी निकल नही पायेगा, क्यूंकि यह इनकी आदतों में है की जब एक ऊपर चढ़ रहा होगा तो पीछे से दूसरा उसका टांग पकड़ कर खीच देगा, यह प्रक्रिया चुकी लगातार चलती रहेगी इसलिए मुझे किसी ढ़क्कन की आवश्यकता नही पड़ेगी।
वर्तमान में यही हालात भारतीय राजनीति की है कोई भी दल या नेता समन्वय और सामंजस्य की बात नही कर रहा। व्यक्तिगत स्वार्थ के चक्कर में राष्ट्रहित कोशो दूर कर दिया गया है, नतीजा सामने है किसी भी दल को सत्ता में आने लायक बहुमत नही मिल रहा है सब काफी जोड़ तोड़ के बाद भी एक कुशल बिपक्ष के लायक ही बनते नज़र आरहे है सत्ता पाने की होड़ किसी को भी परफेक्ट नही बनने दे रहा है । जनता के बीच विश्वास का माहौल पैदा न कर पाने का ही नतीजा है की सारे दल या गठबंधन दो तिहाई से दूर होने जा रहे है। सारे लोग बारी बारी से सत्ता में आने के बजाये एक ही बार दस बारह की संख्या में प्रधानमंत्री बन जाने की योजना के साथ अखाड़े में डटे हुए हैं, जब की एक बार एक ही हो सकते हैं ये सब जानते हैं। जनता भी टुकड़े टुकड़े में बट कर बिखरे हुए है। एक साझा कोशिश का अभाव व समन्वयहीन व्यक्तिगत स्वार्थपरक राजनीतिक सोंच के कारण देश या तो पांच वर्षों के लिए ब्लैकमेल होने जारहा है या फिर चुनावों के भार तले दबने। इसके वाबजूद भी राजनीतिक केकड़ेबाजी जारी है..............
1 टिप्पणी:
very good write always
ashish trivedi
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