मंगलवार, 15 सितंबर 2009

टीवी के बिना आज का भारत न होता...


टीवी पर महाभारत आना है मतलब सारे काम निपटा के लोग शाम को पहले ही घर आ जाते। भले ही उसदिन बाज़ार का दिन होता था लेकिन लोग बाज़ार से जल्द आ जाते । शुक्र का बाज़ार ज्यादा देर तक नही चल पाता क्यूंकि उस दिन महाभारत आना है घर में खाना बनाने और खाने का काम भी पहले ही ख़त्म कर लिए जाते। उन दिनों गाँव में एक आध टीवी हुआ करता था वो भी किसी मालिक के यहाँ जो खासे संपन्न हुआ करते , आज यह घर घर है । महिलाएं हाथ में फूल लेके आया करती थी। ज्योंही मोंटाज घूमता...यदा यदा ही धर्मस्य ... शुरू होता लोग फूल टीवी की ओर उछाल कर प्रणाम करते थे। फिर किसकी मजाल की एक शब्द भी मुह से निकाले। टीवी जिनके यहाँ हुआ करता था वे पहले से प्रबंध करके रखते थे । बड़ा सा त्रिपाल,चटाई दरवाजे पर बिछा दिया जाता था । यही हाल रामायण और चित्रहार वाले दिन भी होता था ....दरअसल वो एक ऐसा दौर था जब टीवी अपने बाल्यावस्था से गुजर रहा था बिल्कुल निर्दोष बच्चों की तरह , तभी तो लोग भी पूजा करते थे क्योंकि बच्चा भगवान का रूप हुआ करता है। आज टीवी के भारत में पचास साल पूरे हो गए ....कई तरह के रंग बिरंगे चैनल आगए हैं, और इसके सफर में कई तरह की बुराइयों को भी महसूस किया जाने लगा है। बिल्कुल आज के युवा के तरह ही टीवी में भी बुराइयाँ आगई है। आज का युवा जैसे अधिक कर्मशील होने के साथ साथ सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ता जा रहा है लेकिन चरित्र, संस्कार संस्कृति कहीं दूर छूट गई है। ठीक वैसे ही टीवी भी अपने जवानी का जश्न मनाता दिख रहा है , लिहाजा उदेश्य से भटक जाना लाजिमी है। राखी के स्वयम्वर और सच का सामना तो एक उदहारण मात्र है। फिरभी टीवी ने जो बचपन में कर दिए उसका नतीजा आज का सूचना संपन्न और समृद्ध समाज है। देश अगर विकास पथ पर बढ़ने का सपना देख रहा है तो इन सपनो के गढ़ने में दूरदर्शन के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता ।आज के भारत की कल्पना में टीवी के सूचना,शिक्षा,और मनोरंजन का जो उदेश्य था एक हद तक उसकी पूर्ति हुई है। दूरदर्शन का यह स्वर्णिम पचासा बहुत सफल कहा जाएगा।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

जी निश्चित, सफल कहा जायेगा!!

अच्छा आलेख.

विवेक रस्तोगी ने कहा…

निश्चित ही स्वर्णिम सफ़ल है।