१५ वीं लोकसभा के गठन की रणभेरी बज चुकी है .सारे राष्ट्रीय ,क्षेत्रिये,स्थानीय राजनितिक दल अपने-अपने बुद्धि ,कौशल ,विचार धारा की परीक्षा देनेहेतु जनता के बिच आने वाले हैं। कोई दल पंथ निरपेक्षता के नम पर वोट मांगेगा तो किसी को अचानक राष्ट्र की चिंता सताने लगेगी.कोई अल्पसंख्यको की उपेक्षा पर प्रकाश डालेगा तो कुछ को कुछ खास जातियों की समस्या ही चुनावी मुद्दा लगेगा।
इन सब के बिच जनता को भी कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने चाहिए जिससे जनसत्ता कायम करने की ओर बढ़ा जा सके.जनता को अपना एजेंडा खुद तैयार करना होगा पूर्ण बुद्धि का प्रयोग करते हुए राष्ट्रहित को व्यक्तिगत व् दलगत हितों से ऊपर रखते हुए चुनाव करना होगा।
संचार तंत्र के विकास ने एक एक छोटी छोटी जानकारी सुदूर देहात के लोगो तक पहुंचाई है,ऐसे में एक भी मुद्दा लोगो के समझ से बहार नही होना चाहिए.चुनाव में निर्णय लेते समय किसी भी प्रत्याशी का पूर्ण रिकॉर्ड एक बार जरूर देखना चाहिए.चुनाव आयोग ने पांच चरणों में चुनाव की घोषणा करने के साथ साथ यह भी निर्देश जारी किया है की अब प्रत्याशी को एक नही दो दो हलफनामे देने होंगे.एक संपत्ति से सम्बंधित दूसरा अपराध से सम्बंधित ,
मैं समझता हूँ ये दो हलफनामे अगर जनता तक खुल के जायें तो निर्णय प्रक्रिया और आसानी हो जायेगी।
हाल में एक निजी टी.वि .चैनल के सर्वे में यह बताया गया है की कोई भी दल पूर्ण बहुमत लेकर नही आरहा,इतना ही नही दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस और भाजपा के सीटों को भी अगर मिला दी जाए तो दो तिहाई बहुमत नही पुरा hoga. ऐसी स्थिति में यदि सरकार बनती है तो एकबार पुनः देश पाच वर्षों तक ब्लैक मेल होगा ,क्योंकि समर्थन लेने-देने के मामले में बहुत सारी शर्तें छिपी रहती है.पिछली सरकार में या अबतक की जीतनी भी सरकारें समर्थन ले-दे कर बनी है उसमे देश कई महत्वपूर्ण मुद्दे पर ठगा गया है।
इसबार के चुनाव में दो तरह की तैयारी हो रही है,मुख्य दोनों दल हाथ पांव मारकर दो तिहाई के आंकरे को देख रहे है ताकि सरकार बनने में तीसरा मोर्चा बाधा खड़ी न करे जबकि अन्य राष्ट्रीय व् क्षेत्रिये दल अधिक से अधिक सीटें लाने के फिराक में हैं , ताकि उनके दल को सरकार में प्रमुखता दिजाये सरकार चाहे जिस दल या मोर्चे की हो।
ऐसे में देश को मध्यावधि चुनाव से बचाने के लिए व् छोटे छोटे दलों के ब्लैक मेलिंग से बचाने के लिए एक ठोस निर्णय अपने सोंच से लेने की आवश्यकता। जहाँ तक रही विचार धारा की बात तो अब किसी भी पार्टी में विचार धारा के स्तर पर फर्क करना मुर्खता है। भाजपा जिन मुद्दा पर सत्ता में कायम रहती है विपक्ष में रहने पर वही मुद्दा उसके विरोध का शिकार बनता है, ठीक वही हाल कांग्रेस का है सत्ता में रहते हुए जो मुद्दे उसके लिए अहम् हैं विपक्ष में रहने पर वह उन मुद्दों का विरोध करती है। हाल के कई घटना इसके उदहारण हैं सेज हो चाहे पब मामला हो चाहे सेतु समुद्रम हो चाहे अमेरिका के प्रति झुकाव का मामला हो।
तो फिर क्यों न किसी एक दल या मोर्चा जो चुनाव पूर्व गठबंधन हो उसीको दो तिहाई बहुमत देकर भेजा जाए। इससे न सिर्फ़ लोकतंत्र सुदृढ़ होगा बल्कि देश प्रगति के पथ पर भी बढेगा.
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