वो यूँ ही अकेला चला जा रहा था....
वो यूँ ही अकेला चला जा रहा था
किस्मत को अपने लिए जा रहा था,
तन्हाई देख एक तन्हा आकर बोंला।
कबतक अकेले अकेले रहोगे
न मेरी सुनोगे न अपनी ,
जालिम है दुनिया ये तो सबको पता है
पर तू तो बता इसने की क्या खता है?
वजह सुन दूसरा यूँ घबरा के बोला
अपनी जुबान है तो अपना ही बोलो
मेरे बारेमे इतना क्यूँ बोलते हो?
अचानक ही दोनों के लब बुदबुदाये
लक्ष्य से भटकने का सजा हम हैं पाए.........
1 टिप्पणी:
waah bhai ji waah
kya khoob likhte ho aap
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