बादल का बासिन्दा॥
बादल का बासिन्दा हूँ यूँ ही छुपा रहता हूँ
कोई देख न ले अपनी कातिल निगाहों से
खुद को आकाश में जमींदोज किए रहता हूँ,
हरियाली बेचारी भी क्या मासूम होती है
अदाओं से मुझको वो अपनी लुभा लेती है,
तपती है धरती जब रोती है मासूमियत
ये सब कैसे देखूं मेरी इतनी बुरी नियत..........
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