नत करदो मस्तक मेरा अपनी चरण-धूल में,
अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।
करने स्वयं को गौरव-दान करता केवल निज अपमान,
बार बार चक्कर खा-खाकर मरता हूँ पल-पल में।
अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।
रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित........
2 टिप्पणियां:
अच्छी लगी पढ़कर
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
nice poem this poem is always give strength to me........... and im happy to read this poem.........
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