मंगलवार, 2 जून 2009

नत करदो मस्तक मेरा अपनी चरण-धूल में,



अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।






करने स्वयं को गौरव-दान करता केवल निज अपमान,



बार बार चक्कर खा-खाकर मरता हूँ पल-पल में।


अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।
रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित........


2 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

अच्छी लगी पढ़कर

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

singh jay ने कहा…

nice poem this poem is always give strength to me........... and im happy to read this poem.........