बुधवार, 21 जनवरी 2009

आदत आह भरने की........

कमबख्त आदत नही गई तेरी आह भरने की
कमबख्त आदत नही गई तेरी जल्दी पहुँचने की।


आज भले ठहरे हैं हम पर भाग रही है जिंदगियां
शांत भले हैं हम मगर टूट रही खामोशियाँ ।

आज फिर वही हो गई गलती हमसे
अक्सर करते आते थे जो हम गलतियाँ।

वो फिर विदा हो गए हमसे जुदा हो गए
देखते रहे हम मगर रुकी नही जिंदगियां।

उनके रहगुजर हम थे पर वो समझ बैठे कुछ और
युहीं होती रहती अगर कुछ और दिन ये गलतियाँ।

हम बहते पानी के तरह ठहरे नही एक ठौर
ना जाने जिंदगी में कबतक चले ये दौर।

एक साथ रहते हैं तो दूजे की फिक्र कौन करे
पर जो साथ रहते हैं वो मेरा जिक्र तो करें।

उनके जिक्र मात्र से मेरे फिक्र का अंदाज बदल जाता
काश वक्त कभी ऐसा भी आता॥
कमबख्त बदलजाती आदत तेरी ...............
.......इन्द्रप्रस्थ पार्क नई दिल्ली.... में रचित (११.०१.२००९) १०:२५ बजे सुबह...

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

yeh to sahi hai dada ki aaj ki bhag doud bhari jindgi me log humse bhag rahe hai