बुधवार, 20 मई 2009

भाजपा के भय पर कांग्रेस का रुतबा.......

जय हो - भय हो के झंझट को आखिरकार जनता ने समझ ही लिया। चुनाव के पहले चरण से लेकर परिणाम के आखिरी वक्त तक कोई भी राजनीतिक पंडित या अनुभवी राजनेता पंद्रहवीं लोकसभा में ऐसे परिणाम के अंदाजा नही लगाये थे की किसी भी एक गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल पायेगा। यह सही है की वो जमाना गया जब किसी एक दल को पूर्ण बहुमत आ जाएगा और सरकार उनकी होगी, फिरभी यह बात स्पष्ट हो ही गई की कांग्रेस ही वो पार्टी थी जो अकेले सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ रह चुकी है और आगे भी रहेगी। भाजपा वाले या बामपंथी एक कुशल विपक्ष की भूमिका में भले ही रह ले लेकिन सत्ता का भी कुशल सञ्चालन कर लेंगे यह कतई संभव नही है। यह चाहे कांग्रेस की मोनोपोली जो इस देश में बनी हुई है उस कारण हो या फिर अन्य दलों के अकर्मण्यता के वजह से हो। होता यही आया है की सत्ता के काफी करीब रहने के बाद भी अन्य दल जहाँ सरकार बनाने से चूक जाते हैं वहीँ कांग्रेस वाले दूर रहकर भी सत्ता को अपने हाथ लाने का तरीका अच्छी तरह से जानते हैं। अबतक के कई विधानसभाओं को देखकर ये बात स्पष्ट होती है।गोवा, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड,सहित कई उदहारण हमने देखे हैं।
इसमे कोई शक नही की देश के दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के पास अनुभवी नेताओं की एक लम्बी फेहरिस्त है जिसका लाभ इस दल को अबतक नही मिल पाया है।
सत्ता पाने की जिद के आगे भाजपा वालों ने जिस प्रकार से गठबंधन की राजनीति को पहली बार सफल बनाया उसे ख़ुद ही सम्भाल पाने में भाजपा असफल रही। नतीजा सामने है ,कभी इंडिया साइनिंग इसे ले मारती है तो कभी इंडिया को ले कर आत्मविश्वास का आभाव। २००४ के आम चुनाव में जिस भाजपा को देश चमकता हुआ दिखाई दे रहा था, भाजपा वाले पूरे आत्मविश्वास से सराबोर थे वहीँ इस बार नकारात्मक भाव ने उसे कही का नही छोड़ा। इसबार भय,भूख, भ्रष्टाचार के चपेट में भाजपा ख़ुद आगई, महंगाई व आतंकवाद ने उसे कहीं का नही छोड़ा।
मजबूत नेता-निर्णायक सरकार के सारे दावे धरे रहगये। आखिरकार वही चेहरा सामने आया जो देश के लिए अधिक विश्वस्त रहा। मनमोहन सिंह ने चुनाव प्रचार के दरम्यान कुछ न कह कर या अडवानी जी की तुलना में कम कह कर जो संवाद जनता तक पहुंचाई वह इस शेर को चरितार्थ करता है -
"खामोश रहकर हर बात बता देता है,चेहरा अच्छे बुरे हालात बता देता है, कपड़ा फटा हो या हो नया लहजा इन्सान की औकात बता देता है।"
चुनाव प्रबंधन की कमी रही हो या जनता का कांग्रेस प्रेम हो या देश को मजबूत नेता निर्णायक सरकार की आवश्यकता रही हो,आखिरकार हुआ यही की भाजपा अपना रुतबा कायम नही कर सकी। भाजपा वाले को जो भय सताया उससे सबक लेकर कांग्रेस ने यह स्वीकार किया की जय न होने के वावजूद भी जय हो कहना ठीक नही होगा सो वह सचेत होगई।नतीजा सामने है।

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bahoot shandaar likha hai isse pata chalta hai media me abhi bhi qualty bachee hai .

बेनामी ने कहा…

bahut badhiya ..
lekin aapne to cong. ki badai hi ki hai ...
aapka lekh maulik nahi lagta hai ..
aap pure tarike se ek tarfa lekh likhe hai ..
lekh me santulan hopna chahiye ..
aapko ye batana chahiye ki kha kaha chuk hui bjp se ki uske pakhs me anukul parinam nahi aa sake ..
aapne to apne nirnay sunaya hai is lekh me ..
aur antim do line ka sher is lekh se mel nahi khata ..
fir bhi bahut achha likhte rahiye ...

naveen singh ने कहा…

पंडित जी लगता है आप भाजपा छोड़ कांग्रेस के प्रवक्ता हो गए हैं...अब तो कांग्रेस के दिग्गज प्रवक्ताओं को अपनी कुर्सी बचानी होगी क्योंकि अब एक युवा ब्रिगेड का प्रवक्ता उसमें शामिल होने जा रहा है...
मै आपको एक सुझाव देना चाहता हूं, आप अपने ये सारे लेख(जो कांग्रेस के नज़रिए से पूर्णत: सकारात्मक है)माननीय सोनिया गांधी,राहुल बाबा(स्वयं सिद्ध युवा तुर्क) और मनमोहन सिंह को भेजें...जिससे आपको राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा...
मगर
ध्यान रहे अनिल माधव दवे व अन्य भाजपा संगठन के पदाधिकारियों को इन सुंदर लेखों का पता न चलने पाए...

बहरहाल

आपका बड़ा भाई होने के नाते मुझे तो खुशी ही होगी और भविष्य में कभी आपकी बाइट लेने का भी सौभाग्य प्राप्त होगा...

आपका अपना
नवीन सिंह