सोमवार, 25 मई 2009

सुरिंदर की उम्मीदों का ख्याल रखे कांग्रेस.........

अब जबकि "कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ" के नारों को जनता ने स्वीकार लिया है ऐसे में कांग्रेस को एक एक कदम ऐसे उठाना होगा जिसके केन्द्र में आम आदमी की भलाई नजर आती हो। कांग्रेस को इस समाज के अन्तिम पंक्ति के अंत में खड़े उस सुरिंदर की चिंता होनी चाहिए जो पैसे के आभाव में अपने बच्चो की पढ़ाई छुडा कर बाहर (मुंबई ,दिल्ली , आदि बड़े शहरों में ...) कमाने भेज देता है, जो अपने लड़की की शादी के खातिर अपनी जमीन बंधक रख देता है,जो दो जून की रोटी खातिर दिन भर मेहनत करता है फिर भी उतने पैसे नही जमा कर पाता जिससे की उसके परिवार भर का भोजन पानी चल सके,जो आज खाता है तो कल केलिए चिंता में डूबा रहता है, जिसका साथ भाग्य ने भी छोड़ दिया है , वह मालिक से बटाई में जमीन व कर्ज ले कर खेती करता है फिरभी मौसम के दगा और प्राकृतिक प्रकोप के वजह से फसल बर्बाद हो जाती है , सरकारी अनुदान का लाभ उसे इसलिए नही मिल पाता है क्योंकि उसकी पहुँच बड़े लोगों तक नही है या उसके हल्ला हंगामे का डर शासकीय कर्मचारियों को नही है। फिरभी वह शांतचित अपने संविधान में विश्वास रखता है अपने को किसी भटके मार्ग पर लेजाने के बजाये समाज की प्रगति का सपना लेकर भगवान पर भरोसा रखते जीता हैयह सुरिंदर कश्मीर से कन्या कुमारी तक हर रास्ते पर, हर गली में, हर चौराहे पर अपनी किस्मत तलाशते नजर आता है।
उस सुरिंदर की चिंता खासकर कांग्रेस को इसलिए होनी चाहिए क्योंकि यह ख़ुद को आम आदमी की हिमायती समझती है, आजादी से लेकर आज तक दर्जनों ऐसी योजना गरीबी हटाने केलिये कांग्रेस ने चलायी है, जो भले ही सफल या असफल साबित हुई हों पर सत्य यही है की आज भी भारत केलिए गरीबी एक चुनौती के रूप में है। आज भी आम आदमी की आवाज को कोई नही सुनता। कांग्रेस को इस कड़वे सत्य को खुल कर स्वीकार करना चाहिए की देश में अगर गरीबी है तो उसकी एक वजह अब तक सबसे अधिक दिनों तक राज करने के वजह से कांग्रेस की नीति भी रही है। नरेगा के नाम पर जो लूट आज जारी है वह किसी से छुपी नही है। ठीक है की नरेगा की सफलता को कांग्रेस के विजय से जोड़ कर देखा जा रहा है पर नरेगा के तहत जो मजदूर काम कर रहे हैं उसे सौ प्रतिशत मजदूरी नही मिलती है यह सच्चाई है।
जनता इसलिए खुश है की कुछ तो मिला, खैर यह बात तो राहुल गाँधी जी ने स्वीकार भी की है की केन्द्र से भेजे जाने वाले पैसों का बन्दर बाँट होता है। पर यह कब तक होगा? मामला आम आदमी का है इसलिए ध्यान कांग्रेस को देना होगा। उसी तरह सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों के लूट का मामला है जो एक चलन बन गया है, अब तो लोग विरोध भी नही करते क्यूंकि लोगो को आदत लग गई है। आम आदमी एक सामान्य सा चुनावी मुद्दा भर नही है यह एक व्यवस्था का निर्णायक होता है इसलिए इसे नाकारा नही जा सकता।

1 टिप्पणी:

singh jay ने कहा…

you are really hardly slaped on congress face...