बुधवार, 18 नवंबर 2009

ये भावनात्मक आतंकवाद है...!

भारत एक विशाल राष्ट्र है इस बात की पुष्टि के लिए पहले कई सारे असंख्य तथ्य पेश किए जाते रहे हैं...और वो सारे तथ्य अकाट्य भी हैं। हमारे अनेकता में एकता वाली संस्कृति के आगे सारी दुनिया नत मस्तक थी और है भी...इसकी प्रमाणिकता एक और अकाट्य तथ्य से बढ़ जाती है कि भारत ही एक ऐसा राष्ट्र हैं जिसके अंदर महाराष्ट्र बसता है।दरअसल समय समय पर महाराष्ट्र के सबसे चर्चित ठाकरे परिवार ने मराठी मानुष और मराठा साम्राज्य के आगे इंसान को इंसान ना समझते हुए इस मुहिम को आगे बढ़ाया है...मराठी और ग़ैर मराठी के नाम पर कभी टेम्पो रिक्सावाले कि पिटाई तो कभी सड़क किनारे पाव भाजी बेचने वालों को तो कभी असहाय और निर्धन परीक्षार्थीयों को पीट-पीट कर करते रहे हैं। यह सब उसी महान राष्ट्र भारत के महाराष्ट्र में समय समय पर होता है जिसमें वीर शिवाजी के बाद अपने को सबसे शक्तिशाली क्षत्रप कहने वाले ठाकरे परिवार के लोग बसते हैं। महान शिवाजी इस देश को महान बनाने के लिए अतातायियों से लड़ते रहे और विजयी पताका फहराय थे। उनका अनुयायी कहते हुए आज के कथित मराठा शेर महाराष्ट्र के कुछेक बिल्डरों के लाभ के लिए ग़ैर मराठीयों से लड़ते रहते हैं, और इसके लिए भाषा जैसी पवित्र मानवीय आवश्यकताओं को द्वेष और बैर का माध्यम बना चुके हैं। हद तो तब हो गई जब चंद मवालियों के भरोसे अपने डूबते हुए पार्टी को बचाने के प्रयास करने वाले इसी कथित मराठ शेर ने एक ग़ैर भारतीय खेल के भगवान के अवतार सचिन तेंदुलकर को भी भारत का होने से ज्यादा महाराष्ट्र का होना कहने की समझाइस ही नहीं दी अपितु भला बुरा भी कहा...और जब इन ख़बरों को पत्रकारों ने समाज के सामने रखा तो ख़बर दिखाने के जुर्म में कुछेक गुंडों ने अखबार और चैनल तक को नहीं छोड़ा...प्रेस समाज का आइना है...और आइने के सामने खड़े होने की हिम्मत वही कर सकता है जो नैतिक रुप से सबल हो...लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं होना चाहिए कि आइने के सामने खड़े होने की हिम्मत न हो तो आइना को तोड़ ही दिया जाए। शिवसेना ने इस कुकृत्य से यही साबित किया है...अनाप शनाप मुद्दों पर मराठी लोगों के भावनाओं को उकसाना और उसके सहारे अपनी राजनीति की दाल-रोटी चलाने के आदी हो चुके ये लोग कुछ और नहीं कर सकते। इस फिज़ुल की भावनात्मक मुद्दों को चाहे वह जिस प्रांत के लोग उठाते हों इसे भावनात्मक आतंकवाद ही कहा जाएगा, और इससे उतनी ही सख्ती से निपटना चाहिए जितनी सख्ती से बाकी के आतंकवाद से निपटते हैं, हां प्राथमिकता तय करना सरकार का काम है...

3 टिप्‍पणियां:

vikas singh ने कहा…

यह भवानात्मक आतंकवाद चरमपथी आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक हैं। कारण भी है जब चरमपथी आतंकवाद की जड़े देश के बाहर है और उस पर सरकार कोई नियंत्रण नही है तो इस आतंकवाद को पोषित करने का कार्य हमारे दतथाकथित महान राजनीतिक दल के मसीहा कर रहे हैं..तो इस पर नियत्रण का सवाल ही कहा है...दुख तो केवल इस बात का है कि यह आतंकवाद वही से पोषित हो रहा जहाँ से कभी तिलक और सवारकर बधुओं ने देश को एक सूत्र मे पिरोने का बीड़ा उठाया था...।

Md Shadab ने कहा…

I hate raj thakre bhasha ke naam par desh ko baatne wale mujhe pasand nahin.

Md Salim ने कहा…

bahut badiya